हल्के रंग की कमीज़ : काव्यात्मक संवेदना की कहानियाँ
चूँकि प्रस्तुत कहानी- संग्रह में एक कवि की कहानियाँ संग्रहीत है इसलिए प्रसंगवश कहना होगा कि कुछ अपवादों को छोड़कर हिन्दी की वे कहानियाँ ज़्यादा अच्छी है जो कवियों ने लिखी है। यह अलग बात है कि उन्हें समझने और समझाने का काम आलोचना ने नहीं किया, न ही पेशेवर कहानीकारों ने उन्हें सराहा। लेकिन जो लोग कहानी के चालू मुहावरों से हटकर कहानी की नयी संभावनाओं की खोज में रहते है उन्होने कवियों की कहानियों को बार - बार बहुत ज़रूरी काम की तरह पढ़ा।
अनेक बड़े कवि जो मूल रूप से कविता के लिए जाने जाते है, उनकी कहानियाँ हिन्दी कहानी की एक ऐसी परम्परा का निर्माण करती है, जो बने- बनाए सांचों, आयातित संरचनाओं और नादों से पूर्णत: मुक्त है और कथ्य तथा रूप की अभिन्नता के लिए निरंतर प्रयोगरत है।
'संतोष चौबे के उपन्यास 'राग- केदार' ने पहले-पहल लोगों का ध्यान खींचा। अपने कवि- स्वभाव के कारण ही अन्य कवि- कहानिकारों की तरह प्रचलित कहानी की हदों से बाहर ही उन्हें अपनी कहानी की तलाश है।
उन्होंने भाषा की सादगी और संरचना की सहजता का रास्ता पकड़ा है। जो काम मीडिया, फिल्म, अखबार आदि के है उनको छोड़कर उन्हेने जीवन की छोटी-छोटी सच्चाइयों को कहानी का विषय बनाया है। कथ्य को असर 'असाधारणता प्रदान करने के लिए शिल्प का आडम्बर खड़ा करने की कला' से उन्होंने स्वयं को बचाते हुए कहानी के आधार खोजे है। जो लोग कहानी को 'सनसना कर हिला देने वाले यथार्थ का पीपा' समझते है उन्हें शायद इन कहानियों का मर्म बहुत मामूली लगे, लेकिन जिन लोगों के लिए कहानी जीवन की अनुभूत सचाई की कला है, वे इन कहानियों की सहजता से अभिभूत हुए बिना नहीं रहेगें।
मई की दोपहर ठसाठस भरी ट्रेन में जब हम उबल रहे होते है, घबराहट के मारे हवा के लिए बेचैनी हमारी जब साँस रूक जाने के डर में फड़फड़ाने लगती है तो ट्रेन के हिलने और फिर धीरे-धीरे खिसकने का सुख बहुत बड़ा होता है। जो राहत उस वक्त मिलती है वैसी ही राहत मुझे इन कहानियों को पढ़कर मिली।
नवीन सागर